बांकेलाल और विक्रमसिंह, कंकड़बाबा के शाप के कारण विभिन्न योनियों में भ्रमण करते हुए इस बार आ पहुंचे सर्पलोक में जहाँ चल रही थी मूंछ प्रतियोगिता जिसमे विजयी हुए राजा विक्रमसिंह और बांकेलाल को बनना पड़ा हंसी का पात्र जिससे खफा हो बांकेलाल ने सर्पलोक के राजा अमर विषपुरी से बदला लेने के लिए सफाचट कर दी उनकी मूंछे. उन्ही दिनों सर्पलोक में छाया हुआ था बाजलोक के बाज मानवों का आतंक जो सर्पलोक के सर्पों को उठा ले जाते और सर्पलोक के सर्प उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते.
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